आदरणीय गरीबदास साहेब जी का आर्विभाव सन् 1717 में हुआ तथा कबीर साहेब जी के दर्शन दस वर्ष की आयु में सन् 1727 में नला नामक खेत में हुए तथा सतलोक वास सन् 1778 में हुआ।
आदरणीय गरीबदास साहेब जी को भी परमात्मा कबीर साहेब जी सशरीर जिंदा रूप में मिले। आदरणीय गरीबदास साहेब जी अपने नला नामक खेतों में अन्य साथी ग्वालों के साथ गाय चरा रहे थे। जो खेत कबलाना गाँव की सीमा से सटा है। ग्वालों ने जिन्दा महात्मा के रूप में प्रकट कबीर परमेश्वर से आग्रह किया कि आप खाना नहीं खाते हो तो दूध ग्रहण करो क्योंकि परमात्मा ने कहा था कि मैं अपने सतलोक गाँव से खाना खाकर आया हूँ। तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैं कुँआरी गाय का दूध पीता हूँ। बालक गरीबदास जी ने एक कुँआरी गाय को परमेश्वर कबीर जी के पास लाकर कहा कि बाबा जी यह बिना ब्याई (कुँआरी) गाय कैसे दूध दे सकती है ? तब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने कुँआरी गाय अर्थात् बच्छिया की कमर पर हाथ रखा, अपने आप कुँआरी गाय (अध्नया धेनु) के थनों से दूध निकलने लगा। पात्र भरने पर रूक गया। वह दूध परमेश्वर कबीर जी ने पीया तथा प्रसाद रूप में कुछ अपने बच्चे गरीबदास जी को पिलाया तथा सतलोक के दर्शन कराये। सतलोक में अपने दो रूप दिखाकर फिर जिंदा वाले रूप में कुल मालिक रूप में सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा कहा कि मैं ही 120 वर्ष तक काशी में धाणक (जुलाहा) रूप में रहकर आया हूँ।
मैं पहले भी हजरत मुहम्मद जी को भी मिला था। पवित्र कुरान शरीफ में जो कबीरा, कबीरन्, खबीरा, खबीरन्, अल्लाहु अक्बर आदि शब्द हैं वे मेरा ही बोध कराते हैं तथा मैं ही श्री नानक जी को बेई नदी पर जिंदा महात्मा के रूप में ही मिला था {मुस्लमानों में जिंदा महात्मा होते हैं, वे काला चैगा (ओवर कोट जैसा) घुटनों से नीचे तक तथा सिर पर चोटे वाला काला टोप पहनते हैं} तथा मैं ही बलख शहर में नरेश श्री अब्राहीम सुलतान अधम जी तथा श्री दादू जी को मिला था तथा चारों पवित्र वेदों में जो कविर अग्नि, कविर्देव (कविरंघारिः) आदि नाम हैं वह मेरा ही बोध है।
(गाँव छुड़ानी जि. झज्जर (हरियाणा) में आज भी उस जंगल में जहाँ पूर्ण परमात्मा, का सन्त गरीबदास जी को मानव शरीर में साक्षात्कार हुआ था, एक यादगार विद्यमान है।) आदरणीय गरीबदास जी की आत्मा अपने परमात्मा कबीर बन्दी छोड़ के साथ चले जाने के बाद उन्हें मृत जान कर चिता पर रख कर जलाने की तैयारी करने लगे, उसी समय आदरणीय गरीबदास साहेब जी की आत्मा को पूर्ण परमेश्वर ने शरीर में प्रवेश कर दिया। दस वर्षीय बालक गरीब दास जीवित हो गए। उसके बाद उस पूर्ण परमात्मा का आँखों देखा विवरण अपनी अमृत वाणी में “सद्ग्रन्थ” नाम से ग्रन्थ की रचना की। जिसमें गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में कह रहे हैं कि :-
यही काशी वाला धाणक ही (सतपुरुष) पूर्ण ब्रह्म है।
परमेश्वर कबीर ही सतलोक से जिन्दा महात्मा के रूप में आकर मुझे अजब नगर (अद्धभुत नगर सतलोक) में लेकर गए। जहाँ पर आनन्द ही आनन्द है, कोई चिन्ता नहीं, जन्म-मृत्यु, अन्य प्राणियों के शरीर में कष्ट आदि का शोक नहीं है।
इसी काशी में धाणक रूप में आए सतपुरुष ने भिन्न-भिन्न समय में प्रकट होकर आदरणीय श्री अब्राहीम सुल्तान अधम साहेब जी तथा आदरणीय दादू साहेब जी व आदरणीय नानक साहेब जी को भी सतनाम देकर पार किया। वही कविर्देव जिसके एक रोम कूप में करोड़ो सूर्यों जैसा प्रकाश है तथा मानव सदृश है, अति तेजोमय अपने वास्तविक शरीर के ऊपर हल्के तेजपुंज का चोला (भद्रा वस्त्र अर्थात् तेजपुंज का शरीर) डाल कर हमें मृत्य लोक (मनुष्य लोक) में मिलता है। क्योंकि उस परमेश्वर के वास्तविक स्वरूप के प्रकाश को चर्म दृष्टि सहन नहीं कर सकती।
आदरणीय गरीबदास साहेब जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है
“सर्व कला सतगुरु साहेब की, हरि आए हरियाणे नुँ”।
भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा कविर हरि (कविर्देव) जिस क्षेत्र में आए उसका नाम हरयाणा अर्थात् परमात्मा के आने वाला पवित्र स्थल, जिस के कारण आस-पास के क्षेत्र को हरिआना (हरयाणा) कहने लगे। सन् 1966 को पंजाब प्रान्त के विभाजन होने पर इस क्षेत्र का नाम हरिआणा (हरयाणा) पड़ा। लगभग 236 वर्ष पूर्व कही वाणी 1966 में सिद्ध हुई कि समय आने पर यह क्षेत्र हरयाणा प्रान्त नाम से विख्यात होगा। जो आज प्रत्यक्ष प्रमाण है।

श्री सतगुरु ग्रन्थ साहिब
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आचार्य गरीबदास जी
आचार्य गरीबदास साहेब जी का आर्विभाव सन् 1717 में हुआ तथा कबीर साहेब जी के दर्शन दस वर्ष की आयु में सन् 1727 में नला नामक खेत में हुए तथा सतलोक वास सन् 1778 में हुआ।
अजब नगर में ले गया, हमकूं सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।।
गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है। भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत् कबीर हैं।।
हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं। दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया। जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर। दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।
जिंदा जोगी जगत् गुरु, मालिक मुरशद पीर। दहूँ दीन झगड़ा मंड्या, पाया नहीं शरीर।।
गरीब जिस कूं कहते कबीर जुलाहा । सब गति पूर्ण अगम अगाहा।।
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