
कबीर साहेब जब 600 साल पहले आए थे। तब उन्होंने जो सामान इस्तेमाल किए थे। उनमें से कुछ सामान ये हैं।
– गुलाम ऐ कबीर
कबीर साहेब का चरखा
हमारे सच्चे भगवान, सतगुरु और गुरु सभी हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। वह हमेशा हमारे साथ है लेकिन दुख की बात है कि हम उसे नहीं जानते। 🙁
कबीर साहेब की खड़ाऊ
सद्गुरु कबीर के प्राचीन स्मारको और उनसे जुड़ी रोचक जानकारी जानने के लिए क्लिक करे।
कबीर साहेब का घड़ा और रामानंद द्वारा भेंट में दी गई माला
कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया गुरु क्यों बनाया क्योंकि काल ने पूरा अज्ञान फ़ैला रखा है और परमात्मा प्राप्ति का नियम है।
गुरु बिन माला फेरते,गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन सब निष्फल गया, पूछौ वेद पुरान ॥
पंडित स्वामी रामानन्द जी एक विद्वान पुरुष थे। वेदों व गीता जी के मर्मज्ञ ज्ञाता माने जाते थे। जिस समय कबीर परमेश्वर (कविर्देव) अपने लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हो गए तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। अढ़ाई वर्ष की आयु के बच्चे का रूप धारण करके सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौडि़यों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ जाया करते थे। श्री रामानन्द जी चारों वेदों के ज्ञाता और पवित्र गीता जी के विद्वान माने जाते थे। स्वामी रामानन्द जी की आयु 104 वर्ष की हो चुकी थी। काशी में जो पाखण्ड पूजा दूसरे पण्डितों ने चला रखी थी वह बंद करवा दी थी। रामानन्द जी शास्त्र अनुकूल साधना बताया करते थे और पूरी काशी में अपने बावन दरबार लगाया करते थे। एक दिन भी जब स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौडि़यों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममूहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई। कविर्देव ने जैसे बालक रोते हैं ऐसे रोना शुरु कर दिया। रामानन्द जी तेजी से झुके और देखा कि कहीं बालक को चोट तो नहीं लग गई तथा प्यार से उठाया। उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी (माला) निकल कर परमेश्वर कविर्देव के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम – राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं, पुत्र राम – राम बोलो, कबीर साहेब के सिर पर हाथ रखा। शिशु रूप में कबीर साहेब चुप हो गए। फिर रामानन्द जी स्नान करने लग गए और सोचा कि बच्चे को आश्रम में ले चलूँगा। जिसका होगा उसके पास भिजवा दूँगा। रामानन्द जी ने स्नान करके देखा तो बच्चा वहाँ पर नहीं है कबीर साहेब वहाँ से अंतध्र्यान हुए और अपनी झोपड़ी में आ गए। कबीर साहेब तों स्वयं ही जगतगुरू सर्व सृष्टि के रचियता हैं जगत पालनकर्ता हैं। भला उनकों गुरु बनाने की क्या आवश्यकता थी लेकिन साहेब जानते थे की आने बाले समय मै काल के प्रचारक बोलेंगे की कबीर साहेब के कौन से गुरू थे जो गुरु परम्परा बताते हैं। इसलिए यह लीला की थी कबीर परमेश्वर ने कबीर परमेश्वर ने तो रामानंद जी जैसै लाखों गुरु और लाखों चेलों को पार कर दिया।
रामानंद से लख गुरु, तारे शिष्य के भाय।
चेलो की गिनती नहीं, उस परमपद मैं रहें समाय॥
कबीर साहेब को गोरखनाथ द्वारा भेंट में दिया त्रिशूल
सद्गुरु कबीर के प्राचीन स्मारको और उनसे जुड़ी रोचक जानकारी जानने के लिए क्लिक करे।
सद्गुरु कबीर जी का मंदिर और मस्जिद
हमारे सच्चे भगवान, सतगुरु और गुरु सभी हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। वह हमेशा हमारे साथ है लेकिन दुख की बात है कि हम उसे नहीं जानते। 🙁
You must be logged in to post a comment.