सद्गुरु कबीर जी

कबीर साहेब

गंगा दरिया का ही पानी लहरों के द्वारा उछल कर काशी में एक लहरतारा नामक बहुत बड़े सरोवर को भरकर रखता था । बहुत निर्मल जल भरा रहता था। उसमें कमल के फूल उगे हुए थे। कबीर साहेब अविगत अवतारी है जो समय समय पर जीवों को चेताने के लिए विदेह स्वरूप में संसार में लीला करते है।

अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।

सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास शुद्धि पूर्णमासी को ब्रह्ममुहूर्त में सत्यलोक से सशरीर आकर परमेश्वर कबीर (कविर्देव) बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए।

पानी से पैदा नहीं, श्वास नहीं शरीर।
अन्न आहार करता नहीं , ताका नाम कबीर ।।

उसी लहरतारा तालाब पर नीरू-नीमा सुबह-सुबह ब्रह्ममुहुर्त में स्नान करने के लिए प्रतिदिन जाया करते थे। जिन्हें साहेब पूर्व संस्कारवश बालक रूप में प्राप्त हुए।

चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार यक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को, पूरनमासी तिथि प्रगट भए ॥
घन गरजें दामिनि दमके, बूँदे बरषें झर लाग गए।
लहर तलाब में कमल खिले, तहँ कबीर भान प्रगट भए ॥

जुलाहा दम्पति नीरू-नीमा शिशु रूप में लीला कर रहे साहेब को घर ले आये। काशी के स्त्री तथा पुरुष बालक को देखने आए तथा कहने लगे कि यह तो कोई देवता नजर आता है। इतना सुन्दर शरीर, ऐसा तेजोमय बच्चा पहले कभी हमने नहीं देखा। कोई कहे यह तो ब्रह्मा-विष्णु-महेश में से कोई प्रभु है ।

ब्रह्मा-विष्णु-महेश कहते हैं कि यह तो कोई ऊपर के लोकों से आई हुई शक्ति है। ऐसे सब अपनी-अपनी टिप्पणी कर रहे थे ।

गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाय ।
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय ॥377॥
गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश |
ईश कहै पारब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस ॥391॥

पंडित, पुजारियों एवं धर्म के ठेकेदार बने पाखंडियों द्वारा शोषित, उपेक्षित व आतंकित समाज के उद्धार के लिए साहेब कबीर ने अपनी ओजस्वी एवं स्पष्ट दो टूक न्याययुक्त वाणिया के द्वारा समाज में फैले पाखंड व अन्धविश्वास भरे धर्मविरुद्ध आचरण के प्रति भेषधारी साधु, पंडित, योगी, पंडित एवं काजी मुल्ला को फटकारा और उन्हें सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

स्वामी रामानंद जी उच्च वर्ग के अलावा अन्य वर्गों, वर्णों को दीक्षा नहीं देते थे। अस्पृश्यता, छुआ-छूत, घृणा का वातावरण अधिक जोर पर था इसलिए उन्होंने रामानंद जी को गुरु मानकर मर्यादा का पालन किया। साहेब कबीर ने रामानन्द जी की भ्रान्ति को तोड़कर सभी के लिए भक्ति भजन का मार्ग प्रशस्त किया व पहले से चल रहे वैष्णवपंथ को कबीरपंथ में बदल दिया।

काशी मोक्षदापुरी कही जाती थी। मुक्ति की कामना से लोग काशीवास करके यहाँ त त्यागते थे और मगहर में मरने का परिणाम या फल नरक गमन माना जाता था। इसी के विरोध में कबीर साहेब लीला सम्पन्न करने के लिए काशी छोड़कर मगहर चले आये।

जो काशी तन तजै कबीरा तौ रामहिं कहा निहोरा रे ।

120 वर्ष तक काशी में रहने के बाद साहेब कबीर ने मगहर में सन् 1575 में लीला समाप्त की।

सम्बत पन्द्रह सौ पिचहतर, किया मगहर को गौन ।
माघ सुदी तिरोदशी, मिला पवन में पौन ॥

जब साहेब कबीर लीला सम्पन्न कर अंतर्ध्यान हो गये तो हिन्दू शिष्य उनके शरीर को जलाना तथा मुस्लिम शिष्य दफनाना चाहते थे और दोनों में विवाद बढ़ने लगा तब आकाशवाणी हुई –

तुम खोलो परदा, है नहीं मुर्दा, मुहं मिथ्या करि डारा |

चादर हटाई गई तो चादर के नीचे कबीर साहेब के शरीर के स्थान पर फूल मिले ।

फूल मिले कफन के नीचे, पाया नहीं शरीर ।
ऐसे सतगुरु आप थे, अविगत सत कबीर ॥

उन फूलों को हिन्दुओं व मुस्लिमों ने सप्रेम बांटकर मगहर में एक ही स्थान पर मंदिर व मस्जिद का निर्माण करवाया जो हिन्दू मुस्लिम एकता की एक बहुत बड़ी निशानी है। (वह स्थान देखने के लिए क्लिक करें।)

“हिन्दू तुरुक के बीच में, मेरा नाम कबीर |
जीव मुक्तावन कारणे, अविगति धरा शरीर ॥”

“सतगुरु पुरुष कबीर है, चारों युग प्रमाण ।
झूठे गुरुवा मर गये, हो गये भूत मशान ॥”

आचार्य गरीबदास जी

कबीर बीजक

कबीर साहेब के अमृतमयी ज्ञान पर आधारित “बीजक”, जहाँ आप अपने जीवन के अनसुलझे सवालों का जवाब तलाश सकते हैं। “बीजक” कबीर के संकलनों में सबसे प्रसिद्ध है। कबीर साहेब ने ही सबसे पहले “बीजक” नामक ग्रन्थ की रचना की थी। उनसे पहले किसी ने बीजक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था।

“बीजक” मूल ज्ञान का वही वस्त्र है जिसके बिना आज सारा संसार नग्न नज़र आ रहा है।

बीजक ग्रन्थ के लिए सद्गुरु कहते है कि बीजक सार शब्द के सामान हैं , बीजक मिले या सार शब्द मिल जाए यह दोनों एक ही बात हैं।



सद्गुरु कबीर साहेब की वाणिया

  1. कबीर बीजक
  2. कबीर सागर (सम्पूर्ण 11 भाग)
  3. कबीर मंशुर